[उत्तर प्रदेश] हालांकि सरकार सजग है किन्तु नौकरशाही है कि बाज नहीं आते कहीं ऐसा न हो सरकार मुंह ताकती रह जाए और पैरों तले से जमीन खिसकती चली जाए। कुछ ऐसा ही हुआ था समाजवादी सरकार में उसका खामियाजा उनको सरकार गवा कर भुगतना पड़ा था। स्वर्गीय पत्रकार जग्गेश हत्याकांड के बाद पत्रकारों के जगह-जगह आंदोलन से सरकार की नींद उड़ गई थी लेकिन उनकी आंखें नहीं खुली। सरकार गवाने के बाद आभास हुआ की कठोर कार्रवाई न करके हमें कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा था। ऐसे में सरकार को चाहिए पत्रकारों के साथ अभद्रता करने वालों पर कठोर कार्रवाई का प्रावधान करें साथ ही साथ कठोर कानून बनाए ताकि कानून व्यवस्था की आड़ में पत्रकारों का दोहन ना कर सकें साथ ही साथ सरकारी नौकरशाहों को सुनिश्चित कराना होगा कि उनकी जवाबदेही क्या बनती है।
यदि सरकार ऐसा करने में नाकामयाब रहती है तो उसको भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है इसके लिए आपको तैयार रहना होगा। इस सरकार में अब तक छोटे बड़े पत्रकार उत्पीड़न के मामले 300 के आसपास हो चुके हैं कुछ में मुख्यमंत्री को भी सामने आना पड़ा कुछ में पुलिस महकमे के मुखिया डीजीपी साहब को सफाई पेश करनी पड़ी और दोषियों पर कार्रवाई की गई तो सरकार को मान लेना चाहिए कि अब पत्रकारों के लिए भी कठोर कानून की आवश्यकता है। उनकी भी मूलभूत आवश्यकताएं होती है उसे ध्यान में रखते हुए सरकार को कदम उठाना चाहिए जबकि सरकार मजबूत पक्ष के साथ में खड़ी है और आश्वासन भी करती है सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास नारे के साथ अटल है तो संविधान में पत्रकारों के लिए जिससे उनका उत्पीड़न ना हो सके के लिए कठोर कानून को पारित कराना चाहिए।
[बात करते हैं अपनी कवियों की]
सरकार किसी के लिए कुछ नहीं करती इसके लिए बहुत बड़े आंदोलन की आवश्यकता है दुख की बात यह है हमारे देश में हजारों पत्रकार संगठन है फिर भी हम पत्रकार पत्रकार बंधुओं को एक कानून भी नहीं मिल सका। वरिष्ठ अनुभवी पत्रकार संगठनों से निवेदन करना चाहूंगा आप गणमान्य लोग कुछ ना कुछ प्रयास करिए ताकि पत्रकार नाम का स्तंभ यानी चौथा स्तंभ मजबूत व शक्तिशाली बना रहे इसकी गरिमा व सत्यता निर्भीक निडर ऊर्जावान व्यक्तित्व बरकरार रहे। देश के समस्त पत्रकार बंधुओं से अपील करना चाहूंगा एकत्रित रहे अनुशासित रहे एक दूसरे के बीच मतभेद की स्थिति उत्पन्न न होने दें। अन्यथा की दशा में इसका फायदा वह लोग उठाते हैं जिनके खिलाफ आप आए दिन बेबाक खबर प्रकाशित किया करते हैं इसका इसका नाजायज फायदा उठा कर हम पत्रकार बंधुओं को आपस में लड़ाते हैं। और एकता मैं अनेकता की स्थिति में वह हम पर अनावश्यक उत्पीड़न करते हैं मारपीट करते हैं झूठे मुकदमों में फंसाते हैं।
अंत में एक छोटी सी विनती एवं राय मैं उन पत्रकार बंधुओं के लिए कहना चाह रहा हूं जो आज किसी न किसी रूप में सरकार व नौकरशाहों के सपोर्ट में रहकर पत्रकारों पर अनावश्यक हमले कराते हैं और उन्हें झूठे मुकदमों में फसाने में बहुत बड़ा योगदान होता है। ऐसे पत्रकार बंधुओं से मैं पूछना चाहूंगा की आप अपने भविष्य रूपी पैरों पर अपने हाथों से कुल्हाड़ी मार रहे हो। कहने का अर्थ क्या है की एक पत्रकार पर मुकदमा लिखा कर या मारपीट कर कर आपने सिद्ध कर दिया कि हम कितने कमजोर हैं खुदा ना खास्ता वहीं तानाशाही रूपी तलवार आप के गिरेबान पर आकर लटके तो आप क्या करेंगे आप पर कौन सपोर्ट करेगा सोचनीय तथ्य विचार करें ताकि आने वाले समय में आप अपने भविष्य के बारे में सोच सकें धन्यवाद