उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एएमयू एडमिनिस्ट्रेशन ने कल यानि 27 मई को एक मीटिंग की जिसमें यह फैसला लिया गया कि बहुत सारे लड़के एएमयू के हॉस्टल में रुके हुए हैं। उन्हें खाली करके घर जाना पड़ेगा। फैजुल हसन ने कहा कि मैं पूछना चाहता हूं कि आखिर ऐसा फरमान ऐसे वक्त में क्यों किया जा रहा है। छात्रों को हॉस्टल से बाहर जब कि पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से लड़ रही है। अगर वह बच्चे हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई और कम्पटीशन की तैयारी कर रहे हैं । तो इसमें परेशानी किस बात की है? एएमयू की ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया में कमी होने के कारण रोज़ बहुत सारे बच्चे कंट्रोलर ऑफिस, रजिस्टार ऑफिस, वीसी ऑफिस के चक्कर लगा लगाकर परेशान हो रहे हैं। और मेल या एप्लिकेशन भेज रहे हैं क्योंकि उनके फॉर्म के भरने की पूरी प्रक्रिया नहीं हो पाई है। ऐसे में अगर वह बच्चे दूर ज़िले में अपने घर चले जाएंगे तो वहां से कैसे अपनी प्रक्रिया पूरी करेंगे ?
आपका यह कहना है । कि बच्चों को उनके घर पर या तो मेल के ज़रिए या खत के ज़रिए आगे की प्रक्रिया बता दी जाएगी।
एएमयू के छात्रों को जो मेडिकल सुविधाएं आसानी से एएमयू के कैंपस में रहकर मिल सकती है वे उन्हें अपने गृह जनपद में यह सुविधाएं इतनी आसानी से नहीं मिल सकती हैं और अगर मिलेंगी भी तो जो पैसे खर्च होंगे उसके लिए एक मिडिल क्लास या मज़दूर तबके के छात्र के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा ! ऐसे वक्त में एएमयू एडमिनिस्ट्रेशन को सोचना चाहिए कि वह सारे बच्चों को यहां बुलाकर सबको अलग से कैम्प लगाकर वैक्सीन लगवाएं जिससे कोरोना जैसी महामारी से छात्रों की ज़िन्दगी बचाई जा सके। एएमयू के छात्रावासों के मेन्टेनेन्स के नाम पर हर साल झूठा वादा किया जाता है। हर साल जहां केंद्र सरकार एएमयू को मेन्टेनेन्स का पैसा अलग से देती है, आखिर वह पैसा कहाँ जाता है? बैठक में इस मुद्दे पर क्यों बात नहीं की जाती है ? बहुत सी कमियाँ और प्रश्न हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।