राजस्थान (भीलवाड़ा) कहते हैं कि आज दुनिया में हर कोई इंसान अपनो से मिलने वाले दुखों से इतना परेशान हैं कि आज उसकी हालत ऐसी है कि ना उगलते बनता है और ना निगलते। और जब वो एक महिला हो भरी जवानी में उसका शौहर इस दुनियां से चला जाए और जब अपने ही परिवार के लोग दुःख देने लग जाए तो उसके सामने मरने के सिवा कोई चारा नहीं रह जाता है। जब ऐसी स्थिति किसी मजबूर महिला की हो तो उसकी मजबूरियों के हालात हर कोई समझ सकता है। और उसे प्रताड़ित करने वाले उसके ससुराल वाले किसी ऊंचे ओहदे पर हो और उन ससुरालियों के ऊंचे रसूखात के चलते उस औरत को हमारे लचीले कानून के कारण न्याय मिल पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। एक औरत की शादी के बाद ससुरालियों की प्रताड़ना का दौर तब शुरू होता हैं जब उसका हमदर्द उसका पति हृदयाघात से इस दुनियां से रुखसत हो गया होता है। ज़ी हां हम बात कर रहे हैं अजमेर में रहने वाली 32 वर्षीय शिक्षित सैयदा शहनाज़ आलम की। जिनका मायका लखनऊ (उत्तरप्रदेश) में है और उनके माता-पिता ने शहनाज़ आलम की शादी बड़े धूमधाम से अजमेर निवासी सैयद सफीक आलम के साथ खुशी खुशी की थी। शहनाज़ भी अपने पति के साथ अपनी जिंदगी प्यार से गुजार रही थी। जिंदगी के दिन प्यार मोहब्बत से गुजर रहे थे। वक्त गुजरता गया। समय के साथ शहनाज़ ने एक बेटे सैयद सफदर हुसैन को जन्म दिया। तब शहनाज़ और उसका पति और उसके परिवार में खुशी का माहौल था। पति का अजमेर में ही दुग्ध डेयरी का व्यवसाय था। जिससे अच्छी आमदनी होती थी। जिसके चलते शहनाज़ उस समय आस पड़ोस में लोगों को भरपूर पैसे देने का काम भी करती थी या यूं कहें शहनाज़ की जिंदगी की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी। कहते हैं कि आज के जमाने में खुशियां ज्यादा दिन तक स्थायी नहीं होती है। और यही शहनाज़ के साथ भी हुआ, शायद शहनाज़ की खुशियों को किसी की नजर लग गई। आज से आठ साल पहले उसके पति के हृदयाघात हो जाने से वो शहनाज़ को जिंदगी के बीच मझधार में छोड़ इस दुनियां से चल बसे और शहनाज़ के लिए पीछे छोड़ गए एक त्रासदी, असहनीय दुःख, पीड़ा। जिंदगी की खुशियों और अमीरी में मशगूल शहनाज़ जीवन में आने वाले दुःखों से अंजान थी। कहते हैं जब इंसान के ऐसे हालात हो तो दुखों की शुरुआत अपनों से ही होती है। ठीक ऐसा ही शहनाज़ के साथ भी हुआ। उसके ससुराल वालों ने शहनाज़ के पति के गुजर जाने के बाद प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था जो आज भी बदस्तूर जारी है। शहनाज़ ने बड़े दुखी मन से इस संवाददाता भैरू सिंह राठौड़ को आपबीती सुनाते हुए बताया कि वह आज भी ससुरालियों की प्रताड़ना से इतनी तंग आ चुकी और हुं कि आत्म हत्या करने को जी चाहता है, पर एकमात्र अपाहिज बेटे सफदर की मासुमियत और प्यार उसको ऐसा करने से रोक देते है। जब इस संवाददाता भैरू सिंह राठौड़ ने आज के जमाने के हालातों को देखते हुए पूछा कि ऐसे हालात में एक अकेली जवान औरत के समक्ष अकेले जिंदगी का सफर काटना मुश्किल होता हैं। शहनाज़ के आतंरिक मन को टटोलते हुए पुछा कि ऐसे हालात में उन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की…?? तो शहनाज़ ने दृढ़ता से अपनी बात रखते हुए कहा कि एकमात्र अपाहिज बेटे सफदर की मासूमियत व मोहब्बत तथा बेटे की लाचारगी ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और वो करना भी नहीं चाहती थी, शहनाज़ ने कहा कि उन्होंने अपनी जो बाकी बची है जिंदगी उसे भी अपने बेटे के नाम कर दी है। शहनाज़ ने पति के मरने के बाद उनके ससुराल वालों ने घर की जमीन के चक्कर में इतना अधिक प्रताड़ित किया कि उन्हें अपने घर से निकाल कर बेघर कर दिया तब शहनाज़ ने अपने बेटे को लेकर दरगाह में शरण ली तब किसी तरह से एक मोहम्मद हुसैन नाम के नेक इंसान ने शहनाज़ की मदद की। उस समय में हालातों से हारे हुए इंसान के समक्ष किसी अंजान की मदद मिलना भी डूबते हुए इंसान को तिनके का सहारा मिलने के बराबर होता हैं। अभी शहनाज़ के सामने लंबी पड़ी जिंदगी के कड़े अनुभव से रुबरू होना था और जीवन में आने वाली कठिनाईयों से पार पाना बाकी था, ससुराल वालों की प्रताड़नाओं का सामना करना बाकी था। इसके लिए शिक्षित शहनाज़ ने आसपास व अपने मौहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना चालू कर किया है। शहनाज़ बताती है कि उनके पास ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चे अधिकतर गरीब परिवारों के होते हैं जिनसे कभी पैसे मिलते या नहीं मिलते हैं। तंगहाल और गरीबी का सामना कर रही शहनाज़ को शायद दूसरों की ग़रीबी का एहसास है तभी तो उसे गरीब परिवारों से समय पर नहीं मिलने वाले पैसों का मलाल नहीं है, पर दिल में टीस हैं तो अपनों से मिल रहे बेइंतहा दर्द की सौगात की जिसे इस पुरुष प्रधान समाज में अकेली शहनाज़ जैसी औरत का पार पाना मुश्किल है। शहनाज़ ने अपने ससुरालियों द्वारा दी जा रही प्रताड़नाओं से तंग आकर अपने उपर हो रहे जुल्म से परेशान हो कर इंसाफ के लिए न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया है। फिलहाल मामला न्यायालय में विचाराधीन हैं। शहनाज़ कहती हैं उसे इंसाफ जरुर मिलेगा। खुदा के घर देर है पर अंधेर नहीं। सबसे बड़ी आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जिन हालात में शहनाज़ को उसके ससुराल वालों के प्यार की जरूरत थी। ऐसे समय में उसके ससुराल वालों ने जमीन दौलत के चक्कर में उसे घर से निकाल कर बेघर कर दिया। इससे तो यही लगता है कि शहनाज़ के ससुराल वालों का जमीर मर गया है जो वो अकेली, असहाय, अबला शहनाज़ जैसी औरत के साथ इतने ज़ुल्म की बर्बरता से पेश आ रहे हैं। शहनाज़ को किसी नेता या सरकार से कोई मदद नहीं मिली है और ना ही वो उनसे उम्मीद रखतीं हैं, शहनाज़ को खुदा पर पूरा यकीन है कि वो उसकी मदद अवश्य करेगा। शहनाज़ को आज भी डर है कि उनके ससुराल वाले उसके व उसके बेटे के साथ किसी तरह की अनहोनी ना कर दें। शहनाज़ का भविष्य में बस सिर्फ एक ही सपना है कि उसकी दुःख भरे जीवन की कहानी एक किताब के पन्नो पर उद्धवेलित होकर दुनिया के लोगों की नजर में आएं ताकि लोगों को उसके साथ हुए दर्द की ज्यादतियों के बारे में पता चल सके। शहनाज़ बताती है कि उसके बारे में दर्द को बयां करने वाली पुस्तक से मिलने वाले पैसों को भी वह गरीबों के लिए समर्पित कर देगी। शहनाज़ का दर्द इतना है कि शायद उसके दर्द लिए शब्दों का ही अकाल पड़ जाए पर शहनाज़ के दर्द की इंतहा ना हों। आज भी शहनाज़ दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं, पर उसके दर्द की ग़मजदा आवाज किसी के कानों में पड़े और शहनाज़ के लिए कोई मदद की रोशनी और उम्मीद की किरण निकल आएं।