अलीगढ़ में पिता की अर्थी को बेटियों ने कंधा दिया तो लोगों की आंखे नम हो गई. जिस पिता के कंधे पर खेल कर बेटियां बड़ी हुई.उसी पिता की अर्थी को पुत्रियों ने कंधा दिया.वाकया बन्ना देवी के नुमाइश मैदान के पास का है. जहां टीबी की बीमारी के चलते संजय की मौत हो गई.इस लाक डाउन में संजय को टीबी का इलाज नहीं मिल पाया. संजय की पांच बेटियां है.चाय बेचकर संजय परिवार का पालन कर रहा था.लाक डाउन में भले ही सामाजिक संगठन राशन की मदद कर दें. लेकिन परिवार के जीवन यापन के लिये संजय का परिवार अब संकट में है और सरकारी मदद का अब इन्हें इंतजार है. इस लाक डाउन में संजय की टीबी की बीमारी गंभीर हो गई.पिछले छह महीने से सरकारी अस्पातल से टीबी की दवा खा रहे थे. लेकिन लाकडाउन में इलाज मिलना मुश्किल हो गया.चाय की दुकान से संजय परिवार ही पाल पा रहा था.गरीबी में इलाज के लिये पैसा भी नहीं था. छह महीने से मकान का किराया भी नहीं दे सका.बन्ना देवी थाने के पीछे ही संजय की चाय की दुकान है.परिवार में पत्नी व पांच लड़कियां है, एक लड़की की शादी ही कर सका था.वहीं जब बीमारी का मर्ज बढ़ा तो संजय की जान चली गई. शनिवार को अंतिम यात्रा के समय बेटियों ने कंधा दिया.ये नजारा देखकर सभी की आंखे नम थी. पारिवारिक सदस्य नरेन्द्र ने बताया कि छह महीने पहले टीबी बीमारी का पता चला.परेशानी बढ़ने पर जिला अस्पताल से टीबी की दवा ले रहे थे.लेकिन लाक डाउन में डाक्टर नहीं मिले. जो जांच करते या फिर इलाज से दुरुस्त रखते .संजय की हालत बिगड़ी तो 45 साल में ही जीवन की डोर टूट गई. एक बेटी काजल का ब्याह कर सका था. वहीं राधा,मौनी ,प्रियांशी, ज्योति के सिर से पिता का साया चला गया.संजय की बीमारी के बाद से चारों बहनों का स्कूल जाना बंद है.चाय की दुकान पर लाक लग गया है. पत्नी अंजू के सामने दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है.मकान का किराया व लड़कियों के भविष्य की चिंता सामने है.ऐसे परिवार के लिये सरकार कई योजनाएं चला रही है.लेकिन कोई भी योजना अंजू के दरवाजे तक नहीं पहुंची.इस लाक डाउन में कुछ दिन तक तो राहत सामग्री मिल जायेगी. लेकिन बिना सरकारी मदद के परिवार का जीवन यापन संकट में रहेगा.