प्रेम विवाह आखिर क्यों होते हैं असफल कौन जिम्मेदार अभिभावकों की क्या भूमिका होनी चाहिए सबा खान
News Editor
राजस्थान भीलवाड़ा आजकल की पथभ्रमित होती युवा पीढ़ी को सकारात्मक संदेश देते अजमेर की समाजसेवी सबा खान के विचार जो निहायत ही आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक और शत प्रतिशत सीख लेने जैसा है। सबा खान ने बहुत ही सार गर्भित तरीके से प्रेम विवाह में होने वाले दुष्परिणामों से आगाह किया है। सबा खान पाश्चत्य संस्कृति में उद्वेलित हो रहे “लव इन रिलेशन” को भी भारतीय संस्कृति के खिलाफ और अप्रासंगिक करार दिया और कहा कि आज की युवा पीढ़ी को इससे बचना चाहिए और परहेज करना चाहिए। सबा खान कहती हैं कि भारतीय समाज में फैल रहे पाश्चात्य संस्कृति की आधुनिक अंधानुकरण की अंधी दौड़ में देश की वर्तमान पीढ़ी सर्वाधिक प्रभावित होती जा रही है। आजकल के फैशन परस्त जमाने में युवतियां भी इस बढ़ते फैशन के क्रेज और युवाओं के दिल फेंक आशिक मिजाज के बढ़ते चक्रव्यूह में इस कदर उलझ गई कि अपनी जिंदगी के फैसले बिना सोचे समझे स्वयं ही करने लग गई हैं। प्रेम विवाह की असफलताओं के कारणों एवं परिणामों से अवगत होते हुए भी युवतियां इस प्रथा को अपनाने में कोई परहेज नहीं करती हैं। ऐसी युवतियों को भविष्य में प्रेम विवाह की असफलता से घटित होने वाले गंभीर और कष्टप्रद परिणामों के दौर से भी गुजरना पड़ता है। जिसके लिए काफी हद तक युवतियां ही जिम्मेदार होती हैं। क्योंकि यह उनके द्वारा भावावेश में आकर उठाए गए कदमों का ही परिणाम होता है। आज भी प्रेम विवाह करने वाली कितनी ही नवयोवनाऔं को प्रेम विवाह असफल हो जाने की स्थिति में परिवार और समाज में तिरस्कार व उपेक्षित रवैए की शिकार होना पड़ रहा है। जो वर्तमान में आधुनिकता की अंधी दौड़ में दिग्भ्रमित युवतियों द्वारा भावावेश में लिए गए फैसले का ही परिणाम होती है। आजकल के कोलेजों व विधालय में साथ साथ पढ़ने वाले छात्र छात्राओं के मन में आकर्षण व प्रेम विवाह की बढ़ती अवधारणा को मानने की प्रतिस्पर्धा की बढ़ती संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। अब आमजन के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि बच्चों के इस बढ़ते प्रेम विवाह के क्रेज में अभिभावकों की क्या भूमिका होनी चाहिए..?? प्रेम विवाह की असफलताओं का प्रमुख कारण सैटेलाइट चैनलों पर प्रसारित अश्लील कार्यक्रम के प्रसारण से दिशा भ्रमित होती युवा पीढ़ी को अभिभावकों के अपने काम में व्यस्तता के चलते उचित एवं सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाना है। आजकल के दौर में नजर डालें तो अधिकांश नवयुवकों की नजर में युवतियों को प्रेम जाल में फंसाकर प्रेम विवाह का ज्यादा अर्थ न हो कर अपनी जिस्मानी भूख को शांत करने के अलावा कुछ भी नहीं है, यह अलग बात है कि युवतियां शीघ्र युवाओं की भावनाओं को समझ नहीं पाती है। यह प्रेम विवाह की असफलता का प्रमुख कारण माना जा सकता है, जिसे युवतियां समय से पूर्व समझ नहीं पाती हैं। और प्रेम विवाह की असफलता के पश्चात जब समझने की कोशिश करती हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि युवतियां इस प्रेम जाल में फंसकर होने वाले फायदे और नुक्सान से वाकिफ होते हुए भी वह भावनाओं के मोहजाल में बहकर सभी मानवीय रिश्तों का आसानी से कत्ल कर देती हैं। आजकल की युवतियां इस प्रेम विवाह की असफलताओं के कारणों को जानते हुए भी वो युवाओं के कल्पनाप्रद स्वप्नरुपी संसार में प्रेम विवाह के जाल में उलझकर इसमें असफलता की स्थिति में अपना जीवन तो बर्बाद करती ही है, कहीं कहीं तो वो मजबूरी में कोठे की शिकार भी हो जाती हैं तथा उसे समाज और परिवार में भी हेय दृष्टि से देखा जाता है, जो पुर्व में उनके द्वारा भावावेश और जल्दबाजी में की गई भयंकर भूल का ही परिणाम होती हैं। ऐसी स्थिति में उसके पास एक ही विकल्प होता है कि वह स्वयं आत्मनिर्भर बनकर जीना सीखें मगर प्रेम विवाह में मिली असफलता व समाज के बढ़ते उपेक्षित रवैए की स्थिति में उसका मानसिक संतुलन भी डगमगा जाता है, और वो जिंदगी का सही फैसला नहीं ले पाती हैं। प्रेम विवाह की असफलता और उस पर खोते हुए उसके मानसिक संतुलन की स्थिति में जीवन की कांटों भरी राह रुपी वैतरणी को पार करना भी आसान नहीं होता है। ऐसा नहीं करने की स्थिति में वह आत्महत्या करके अपना जीवन समाप्त कर लेती हैं या फिर किसी अनैतिक कार्य में लिप्त हो कर सदा के लिए घुटनभरी जिंदगी जीने के लिए विवश हो जाती है। क्योंकि उसके लिए घर परिवार के सभी इज्जत भरे रास्ते बंद हो चुके होते हैं। अतः आवश्यकता है कि वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंग रही युवा पीढ़ी को सही तरह से जीवन की ऊंच नीच को समझाने व अभिभावकों के सही मार्गदर्शन की। इस बढ़ते प्रेम विवाह के क्रेज को रोकने में समाज के प्रबुद्ध वर्ग व विशेषकर अभिभावकों को महती भूमिका निभाई चाहिए ताकि सुकुमार कलियां प्रेम विवाह के जाल में उलझकर समय से पहले ही फूल बनकर खिलने वंचित ना रहें।