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युपी के योगी सरकार की पुलिस पत्रकार पर हमले में कहीं शामिल तो नही

 

 उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जहां एक ओर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कानून व्यवस्था और अपनी चहेती पुलिस के व्यवहार को लेकर अत्यधिक आश्वस्त दिखती है तो वही किसी न किसी तरीके से पुलिस भी अपनी कार्यशैली से सरकार के दावो की कलई खोल ही देती है।अब वो चाहे महिलाओ ओर मासूमो पर होने वाले यौन शोषण की घटना हो या फिर लोक तंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों पर हमले की घटना हो। उत्तर प्रदेश पुलिस पहले तो मुकदमा ही दर्ज नही करती और यदि किसी तरह से मुकदमा लिख भी लें तो आरोपियों के साथ सांठ गांठ कर पीड़ित को ही शोषित करती नज़र आ जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ जनपद बुलंदशहर के थाना क्षेत्र छतारी में। जहाँ न्यूज़ कवरेज से वापस लौट रहे संवाददाता पर सोमवार शाम शराब के ठेके पर काम करने वाले सेलमैन ओर उसके गुर्गों ने उस वक्त हमला कर दिया जब कोविद 19 के प्रकोप के मद्देनजर स्थानीय प्रशासन ने शराब की दुकानों के खुलने के लिए अपराह्न 2 बजे से सायं 6 बजे तक का समय निर्धारित कर रखा है , बावजूद इसके सलाबाद स्तिथ शराब का ठेका न सिर्फ शाम 7:30 पर खुल रहा था बल्कि वहां ओवर रेट पर शराब बेची जा रही थी। जब इस नज़ारे को पत्रकार सतीश ने अपने कैमरे में कैद करना चाहा तो अचानक उक्त ठेके के सेलमैन तथा उसके कुछ साथियों ने सतीश पर हमला कर दिया। इतना ही नही वो लोग सतीश को खींच कर दुकान के अंदर ले गए और सतीश के साथ उन्होंने जम कर मार पीट की । इसी दौरान आरोपी सेलमैन तथा उसके साथियों ने सतीश का हैंडीकैम भी छीन लिया जिससे वो कवरेज किया करता था। सतीश के अनुसार ठेके के सेलमैन तथा उसके साथियों ने उसे न सिर्फ जान से मारने की धमकी दी बल्कि जातिसूचक शब्दो से उसे

बेइज्जत भी किया। मौका पा कर सतीश ने स्थानीय पुलिस को सूचित किया जिसके बाद पुलिस हरकत में तो आयी और सतीश को वहां से बचा कर ले आयी। लेकिन पुलिस कि भूमिका उस वक्त संदिग्घ हो गयी जब घटना के 20 घंटे बाद भी आरोपियों पर न तो कोई मुकदमा ही दर्ज हुआ और न ही आरोपी से कोई पूछ ताछ ही कि गयी। घटना की जानकारी पर मंगलवार कों छतारी थाने पहुचे पत्रकारों को प्रभारी निरीक्षक जितेंद्र तिवारी ने आश्वासन तो दिया कि पत्रकार पर किये हमले के आरोपी बक्शे नही जायेगे लेकिन 24 घण्टे बीत जाने पर भी पुलिस द्वारा अभियोग पंजीकृत नही किया गया। अब इसे अपराधियो के साथ पुलिस की संलिप्तता समझी जाए या पत्रकारों की सक्रियता से परेशान पुलिस की शह की एक शराब के ठेके पर कानून का उल्लंघन करता हुआ आरोपी इतना बेखौफ कैसे है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमलावर होने से पहले उसे एक लम्हा भी कानून का भय नही था। जबकि उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ये दावा करते हैं कि पत्रकार और पुलिस एक दूसरे के पूरक है और पत्रकारों की सुरक्षा में कोई समझौता नही किया जा सकता।बाद इसके भी पुलिस का ये चाल चरित्र अपने आप मे सवालिया निशान लगता है।अब देखना ये है कि पत्रकार को न्याय प्राप्त करने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे?

उत्तर प्रदेश ब्यूरो चीफ
नीरज जैन के साथ
कैमरामैन साकेत सक्सेना
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