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बीच में दवा छोड़ने पर एमडीआर की आशंका

जनपद में 99 एमडीआर टीबी रोगी उपचारधीन

 

नीरज जैन की रिपोर्ट

फर्रुखाबाद । ट्यूबरक्लोसिस या टीबी की बीमारी भारत में स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती है। देश में टीबी के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह बैक्टीरिया के कारण होने वाली एक गंभीर बीमारी है जो एक व्यक्ति के माध्यम से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकती है। आमतौर पर टीबी की बीमारी फेफड़ों में सबसे ज्यादा होती है लेकिन फेफड़ों के अलावा यह समस्या शरीर के कई अन्य अंग जैसे किडनी, रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकती है। यह कहना है ज़िला क्षय रोग अधिकारी डॉ रंजन गौतम का ।

डीटीओ ने बताया कि भारत में टीबी के एक रूप मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट या एमडीआर टीबी के मरीज सबसे ज्यादा हैं। एमडीआर टीबी, ट्यूबरक्लोसिस का सबसे गंभीर रूप है जिसमें टीबी के इलाज में प्रयोग की जाने वाली ज्यादातर दवाओं का असर नहीं होता है l डीटीओ ने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित मरीज के शरीर में टीबी के बैक्टीरिया दवाओं के प्रति इतने रेजिस्टेंट हो जाते हैं कि इनका असर बहुत कम होता है। एमडीआर टीबी के मरीजों का इलाज बहुत लंबा चलता है और लापरवाही इस समस्या में जानलेवा मानी जाती है।

डीटीओ ने बताया कि एमडीआर टीबी की समस्या टीबी के मरीजों में इलाज के दौरान गलत तरीके से दवाओं के सेवन के कारण सबसे ज्यादा होती है। जब मरीज टीबी का इलाज करा रहा होता है उस दौरान टीबी की दवाओं का सही तरीके से सेवन न होने या दुरुपयोग होने की वजह से एमडीआर टीबी हो जाती है। इसके अलावा एमडीआर टीबी का दूसरा सबसे बड़ा कारण एमडीआर टीबी के मरीज के संपर्क में आना है। ऐसे मरीज जो एमडीआर टीबी की समस्या से पीड़ित हैं उनके संपर्क में आने से भी यह समस्या हो सकती है।

डीटीओ ने बताया कि एमडीआर टीबी के मरीजों में टीबी के जिसे ही लक्षण दिखाई देते हैं। इस समस्या में मरीजों में दिखने वाले लक्षण बेहद गंभीर हो सकते हैं। जैसे लगातार खांसी और बलगम आना,भूख न लगना,वजन तेजी से कम होना, हर समय बेचैनी और सुस्ती,सीने में दर्द लगातार बना रहना,रात में पसीना आना,हल्का बुखार ,बलगम में खून आना, और खांसते समय खून आना आदि लक्षण हो सकते हैं ।

डीटीओ ने बताया कि एमडीआर टीबी या दवा प्रतिरोधी टीबी की समस्या टीबी के पुराने मरीजों में सबसे ज्यादा देखी जाती है। ऐसे मरीज जिनके इलाज में दवाओं का कुप्रबंधन होता है उनमें एमडीआर टीबी होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। इस बीमारी का इलाज लगभग 18 महीने से लेकर 20 महीने तक चल सकता है जिसमें मरीज को रोजाना दवाओं का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसके इलाज में डॉक्टर मरीज की लिवर, किडनी और शुगर से जुड़ी जांच भी करते हैं। इलाज के दौरान मरीजों में दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट्स भी देखने को मिल सकते हैं। इसलिए मरीजों को हमेशा लक्षण दिखने पर डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।

डीटीओ ने बताया कि एमडीआर टीबी के मरीजों को बचाव के लिए इलाज के दौरान दवाओं का सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। टीबी के मरीजों को इलाज के दौरान दवा की कोई भी खुराक नहीं छोड़नी चाहिए और डॉक्टर की सलाह के आधार पर इलाज जरूर लेना चाहिए। ऐसे लोग जो पहले से टीबी से पीड़ित हैं उनके संपर्क में आने से बचना चाहिए और अस्पताल या ऐसी जगह जहां टीबी के मरीजों का इलाज हो रहा हो वहां पर अनावश्यक रूप से जाने से बचना चाहिए। जिला समन्वयक अमित कुमार ने बताया कि इस समय जिले में 99 एमडीआर मरीज हैं जिनका इलाज चल रहा है ।

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