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मुक्ति की कामना में साधक के हृदय की तीव्रता ईश्वर से मिलाती है – संत भाई संतोष सागर महाराज

नीरज जैन की रिपोर्ट

 

हरिद्वार के परमार्थ आश्रम में सप्त दिवसीय भागवत कथा के प्रथम दिन युवा संत संतोष सागरजी ने कहा कि हम किसी वस्तु का महत्व कितना समझते हैं, यह स्वयं हम पर निर्भर करता है। मूर्ति और पत्थर दोनों में होता तो पत्थर ही है, लेकिन एक दृष्टि ऐसी होती है जो उसमें भगवान को चिह्न लेती है।

वह दृष्टि सचेत होकर ही पाई जा सकती है। महाराज श्री ने कहा कि हरिद्वार आध्यात्मिक उन्नति के लिए परम श्रेष्ठ जगह है, पर यहां आकर भी घर संसार अगर आप से बंध कर ही रह जाए तब तो आप घर के रहे न घाट के।

मुक्त होने के लिए अर्थात मुक्ति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले संकल्प का प्रदीप्त होना बहुत आवश्यक है और संकल्प उन्हीं के सिद्ध होते हैं जिन में पुरुषार्थ भरा हुआ रहता है।

संकल्प और पुरुषार्थ मिलकर परमात्मा को अनुग्रह प्रदान करने के लिए विवश कर देते हैं। परमात्मा को विवश कर देना ही मुक्ति है। संतो के जीवन में कृपा का बड़ा महत्व रहता है।

संत ही संत पर कृपा करते हैं- बिनु हरि कृपा मिले हिं नहीं संता। सब जानते हैं कि हरि की कृपा बिना संतों की प्राप्ति संभव नहीं है। भागवत कथा के इस अवसर पर युवा संत ने कहा कि ज्ञान होगा तो अशांति होगी नहीं।

ज्ञान की मौजूदगी में दुख का अंधकार नहीं रहता। उन्होंने कहा कि मैं आपको महंगी वाली कथा सुनाना चाहता हूं। कथाओं की तात्विकता में बड़ा अंतर रहता है, आजकल कथाओं में चुटकुले सुनाने का दौर शुरू चुका है।

चुटकुले आपको हल्का फुल्का मनोरंजन तो प्रदान करते हैं, लेकिन मर्म का छेदन नहीं कर पाते। कथा में लोक रीझे या न रीझे पर परमात्मा का रीझना आवश्यक है।

गुरुवार को प्रथम दिन प्रातः 5:00 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ परमार्थ घाट पर सवा घंटे तक पितृ तर्पण करवाया गया। जिसमें ढाई सौ से अधिक लोगों ने भाग लिया।

डा. चेतन स्वामी ने बताया कि भाई संतोष सागर ने सम्पूर्ण राजस्थान के 33 जिलों में प्रस्तावित एक वर्षीय सनातन धर्म यात्रा के 17 पड़ाव के उपरांत श्राद्ध पक्ष में सात दिवसीय आयोजन हरिद्वार में रखा है।

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