अनिल अनूप की खास रिपोर्ट
कोठे गोविंदपुरा! पंजाब का सुस्ताता हुआ गांव। मीलों तक पसरे खेतों में गीली मिट्टी और पकते धान की महक। लोग मिलते हैं तो ठहाके लगाते हैं। ताजा मक्खन लगा पराठा परोसते हैं, लेकिन ठहरिए! इन आंखों की कोरों में गहरी उदासी है। उदासी- पीछे छूट जाने की। शर्म- छोड़ा हुआ पति कहलाने की। ये जिंदादिल पंजाबी युवकों का वो चेहरा है, जिसे कोई नहीं जानता।
जैसे ही पंजाब के गांवों में बच्चे जन्मते हैं, मां उसे कनाडा जाने की दुआ देती है और पिता पैसे जोड़ने लगता है। पढ़ाई या कारोबार के लिए नहीं, कनाडा भेजने के लिए!’ हंसी-हंसी में ये बात हमारे लोकल मददगार कह जाते हैं। हम बठिंडा शहर से होते हुए बरनाला की तरफ बढ़ रहे हैं।
पहला पड़ाव है कोठे गोविंदपुरा। करीब 8 हजार की आबादी वाला गांव, जहां लवप्रीत सिंह नाम के युवक की सालभर पहले अपने ही खेत में जहर पीकर, खून की उल्टियां करते हुए मौत हो गई।
25 साल के इस लड़के ने खुदकुशी की, क्योंकि विदेश जा चुकी पत्नी उससे बात करने से इनकार कर चुकी थी। लवप्रीत ने जब उन 35 लाख रुपए का हवाला दिया, जो उसके परिवार ने लड़की को कनाडा भेजने पर खर्च किए थे, तो उसने वॉट्सऐप से लेकर हर जगह से ब्लॉक कर दिया। नंबर भी बदल डाला। ससुराली रिश्तेदार गायब।
बिचौलिया कन्नी काट चुका। बेहद हंसमुख और मेहनती लड़का भीतर ही भीतर घुलने लगा। वो मानसून की शुरुआत थी, जब खेतों में काम के बहाने गया और जहर पी लिया।
हम उन्हीं खेतों से घिरे हुए लवप्रीत के घर के दालान में बैठे हैं। सामने पिता बलविंदर सिंह, जो बात करते हुए फफककर रो देते हैं। एक नहीं, कई-कई बार। 6 फुट से भी ऊंचा-तगड़ा ये पिता फसलों पर, पॉलिटिक्स पर तगड़ी राय रखता है, लेकिन जैसे ही लाडो का जिक्र आता है, कमजोर हो रो पड़ता है। लाडो यानी लवप्रीत।
लवप्रीत के चाचा हरविंदर सिंह से बातचीत के बाद एक-एक करके सारी बातें खुलती चली गईं। साल 2019 में लवप्रीत की शादी एक रिश्तेदार के जरिए हुई। बीन्त कौर आम बच्चियों जैसी ही थी। प्यारी। हंसी-मजाक करने और घर में चिरैया की तरह डोलने वाली।
उसने कनाडा जाने के लिए अंग्रेजी (IELTS) का एग्जाम दिया। इसमें नंबरों की मार्किंग बैंड से होती है। विदेश जाने के लिए इस तरह की परीक्षा पास करना जरूरी है। बीन्त परीक्षा पास कर गई, लेकिन हमारे लाडो के नंबर नहीं आ सके।
हमने खेत का बड़ा टुकड़ा बेचकर 35 लाख रुपए जुटाए और बीन्त को अगस्त 2019 में कनाडा भेज दिया। बस, यहीं से कहानी बदल गई। हरदम हंसकर बात करने वाली उस लड़की ने लाडो का फोन उठाना बंद कर दिया। जब वो बार-बार फोन करता तो झल्लाती हुई एक लाइन लिखती- यहां बहुत काम रहता है। मैंनू चैन से जीने दे। कभी वो पढ़ाई करती होती, कभी ट्रैवल, कभी काम। सब हो जाए तो सोने का वक्त हो जाता। दोनों जगहों के टाइम-जोन में भी फर्क था। लाडो के गट्टियां
(आंखें धंसना) पड़ गईं।
तो आपने कुछ किया क्यों नहीं? मेरे सवाल पर बिदककर कहते हैं- करते तब, जब कुछ पता लगता! लाडो ने पता ही नहीं लगने दिया। मौत के बाद जब पोस्टमार्टम हुआ, तब पता चला कि उसने जहर खाया था। उधर लड़की का फोन लग नहीं रहा था। उसके घरवाले चुप्पी साधे हुए थे। लाडो का फोन खुलवाया तो पता लगा कि महीनों से सब कुछ बिगड़ा हुआ था।
वो लंबे-लंबे लेख (चाचा पंजाबी लहजे में चैट को लेख कह रहे थे) लिखा करता। बीन्त जवाब तक नहीं देती। या देती भी तो हां-हूं से ज्यादा नहीं। यहां तक कि लाडो गिड़गिड़ाते हुए उससे ये तक कहने लगा कि कनाडा भले न बुलाए, लेकिन रिश्ता न तोड़े। पर उसे ‘कनाडा की हवा’ लग गई थी। चैट में ही लाडो ने सुसाइड की बात कही तो उधर से अंगूठे का निशान आ गया। जिसे लवप्रीत सह नहीं सका!
इतना प्यार करने वाले पति को उस लड़की ने क्या नाम दिया होगा, ये जानने की इच्छा दबाती हुई मैं एक बार फिर लवप्रीत के पिता की तरफ मुड़ती हूं। वे दोबारा रो पड़ते हैं। आंसू पोंछते हुए ही कहते हैं- लाडो की मां डिप्रेशन में रहती है। इकलौता बेटा चला गया। दवा खाती है और टाइमपास (वक्त काटना) करती है।
‘टाइमपास’ टर्म पंजाब के दोनों जिलों (बठिंडा और बरनाला) में कई बार सुनाई पड़ा। उन पतियों से, जिनकी बीवियां गायब हो गईं। उन मांओं से जिनके बेटे शादीशुदा होकर भी अकेले हैं। उन पिताओं से भी, जिन्होंने कनाडा के पंजाबी ख्वाब के लिए अपने खेत, जमीनें बेच दीं।
बठिंडा जिले के कोठे बकरियां वालां गांव के एक परिवार ने IELTS देकर ‘तड़-तड़ अंग्रेजी बोलती’ अपनी बहू पर तकरीबन 65 लाख रुपए लगा दिए।
‘सपना था कि कुड़ी बेटे को भी साथ ले जाएगी। हम मिट्टी में मिट्टी हो गए। उसे नहीं होने देना है। यही सोच रखा था, लेकिन कहां पता था वो ऐसी निकलेगी।’ नाम-चेहरा न दिखाने की शर्त पर बकरियां वालां का पीड़ित परिवार बताता है- बहू ने न पैसे लौटाए, न बेटे को बुलाया।
इंसाफ क्यों नहीं मांगते?
पीड़ित युवक के पिता झटके में कहते हैं- हमें नहीं चाहिए कुछ। बस बेटा लवप्रीत की तरह जहर न खा ले! वे कैमरे पर बोलने से साफ मना कर देते हैं। बेटे से मिलवाने को भी राजी नहीं। डर है कि जख्म ताजा हो जाएगा।
हमारा अगला पड़ाव है गांव बल्लों, जो रामपुर फूल तहसील में आता है। करीब 5 हजार बाशिंदों के इस गांव के खेत तो हरे-भरे हैं, लेकिन दिलों की हरियाली सूख रही है। ‘भतेरे (कई) मुझ जैसे लड़के हैं यहां जी!’ हरविंदर सिंह कहते हैं, ‘जिनकी पत्नी पैसे लेकर कनाडा में खो गई।’
शाम ढल रही थी, जब वो हमसे मिलने पहुंचे। हाथ जानवरों को लगाने वाली दवा से नीले पड़े हुए। पहले वे हाथ दिखाते हैं, फिर अपनी कहानी कहने लगते हैं। अप्रैल 2019 में शादी हुई। लड़की के बैंड (कनाडा में स्टडी के लिए अंग्रेजी नंबर) ठीक आए, मेरे नहीं आ सके। सो मैंने कुछ खेत बेचा, कुछ मेहनत से जमा किया और भेज दिया कुड़ी को सात समंदर पार।
जब वो गई तो मैं दिल्ली एयरपोर्ट तक उसे छोड़ने गया था। मेरी आंख भर-भर आती, वो मुस्कुरा रही थी। तसल्ली दे रही थी कि जल्दी तुझे भी बुला लूंगी। बताते हुए हरविंदर एयरपोर्ट के सामने खड़ी तस्वीर दिखाते हैं। लड़की के साथ दो बैग रखे हैं, जिन पर परमानेंट मार्कर से उसका नाम लिखा हुआ है। वो निशानी, जो पहली दफा बाहर जाने वाले रखते हैं कि विदेशी एयरपोर्ट पर सामान खो न जाए। साथ में लंबे-चौड़े हरविंदर खड़े हैं। आंखों में उदासी, लेकिन उम्मीद भी।
मैं पूछता हूं- जब आसपास लगातार धोखा होता देख रहे थे, तो आपने लिखा-पढ़ी क्यों नहीं की?
नुकीली मूंछों पर ताव देते हुए वे बोल पड़ते हैं- पंजाब में हम मूंछ का बाल गिरवी रखकर महाजन से पैसे उधार लेते थे। इतनी कीमत थी हमारी बात की। कहां जानते थे कि वक्त ऐसे बदलेगा। और वो भी कुड़ियां!
एक बार ऐंबैसी से वीजा इंटरव्यू के लिए फोन भी आया था। मैं पहुंचा, लेकिन कई सवालों के जवाब नहीं दे सका, जो मेरी पत्नी से जुड़े थे। कनाडियन अफसर अड़ गए कि तुम पति-पत्नी के बीच ताल्लुकात नहीं। हम तुम्हें अपने देश नहीं बुला सकते।
हरविंदर के पास ढेरों बातें हैं, जो वो पंजाबी मिली हिंदी में बताते हैं। वे परेशान हैं कि बाकी जीवन इंतजार में जाएगा। निकलते हुए कहते हैं- शादी नहीं रखनी, न रखे। पैसे नहीं देने, न सही। तलाक ही दे दे!
अगली सुबह मैं बठिंडा के अजीत रोड पर हूं। वो रोड, जो बिना फ्लाइट, बिना जहाज सीधे कनाडा जाता है।
सड़क के दोनों ओर IELTS कोचिंग और स्टडी वीजा दिलवाने का दावा करते इंस्टीट्यूट्स हैं। उपलब्धियों की लिस्ट लगी है कि उनके यहां के कितने बच्चों ने अंग्रेजी परीक्षा पास की। गलियों में पेइंग गेस्ट के विज्ञापन हैं। कहीं-कहीं ब्यूटी सैलून हैं, जो विदेश जाते बच्चों का हुलिया सुधारते हैं। ये बात खुद एक वीजा काउंसलर ने ऑफ रिकॉर्ड बताई। 15 अगस्त को भी इन इंस्टीट्यूट्स में काम हो रहा है।
कनाडा ही क्यों?
क्योंकि वहां का इमिग्रेशन रूल ढीला है। परमानेंट रेजिडेंसी जल्दी मिल जाती है। फिर वहां तकरीबन हर घर से कोई न कोई है। बच्चा जाएगा तो रिश्तेदारी में रहेगा। सेफ रहेगा। पढ़ाई खत्म करते ही लोग नागरिकता के लिए अप्लाई कर देते हैं, फिर चाहे ट्रक चलानी पड़े या झाड़ू-पोंछा करना पड़े।
क्या लड़कियां जल्दी अंग्रेजी सीख लेती हैं? आरती तपाक से कहती हैं- सीखने का तो नहीं पता, लेकिन वो ज्यादा सिंसिअर होती हैं। यहां एडमिशन लेते ही पेरेंट्स लड़का खोजना शुरू कर देते हैं। ऐसा परिवार जो शादी और कनाडा जाने के पैसे लगा सके। बदले में वो लड़के को भी वहां बुलाने का वादा करते हैं।
ये अलग बात है कि पहुंचने के बाद कुड़ी पति को भूल जाती है। पता नहीं कनाडा की हवा में ऐसा क्या है! हंसते हुए आरती कह रही हैं।
नाम-चेहरा छिपाने की शर्त पर अंग्रेजी पढ़ाने वाले एक टीचर ने बताया कि उनका इंस्टीट्यूट अब मैरिज ब्यूरो बन गया है। लड़कों के घरवाले आते हैं और पढ़ने में तेज लड़की से मिलवाने की फरमाइश करते हैं, ताकि वे अपने ‘मुंडे नूं’ बात चला सकें। बदले में हमें कमीशन देने तक का लालच दे डालते हैं।
तब आप क्या करते हैं? हम समझाते हैं कि बेगानी कुड़ी पर पैसे लगाने की बजाय वे अपने लड़के को पढ़ाएं। भले ही दो के छह महीने हो जाएं, लेकिन एक बार IELTS में ठीक स्कोर आ जाए तो अपने-आप लड़का कनाडा चला जाएगा। लौटते हुए मेरी नजर अजीत रोड के साइनबोर्ड पर पड़ती है। पंजाबी और अंग्रेजी में लिखा ये बोर्ड भले धुंधला हो गया हो, लेकिन सड़क की रौनक लगातार बढ़ रही है।