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गोंडा पंचायत समिति की कोई बैठक नहीं और विकास कागजों पर दौड़ रहा है

नीरज जैन रिपोर्ट –

गोंडा । उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आए दिन पंचायत में अलग अलग किस्म के घोटालों को लेकर चर्चाएं होती रहती हैं। आज हम आपको एक ऐसी घपले की बात बताने जा रहे हैं जो बहुत ही संगठित रूप से की जा रही है और उसकी भनक तक किसी को नहीं लगने दिए जाने की कोशिश भी की जाती रही है।
जिला गोंडा का एक मिश्रित आबादी वाला पंचायत है “दुलहापुर बनकट”। पंचायत के प्रधान पद पर एक साधारण परिवार की महिला हैं। कायदे कानून से दूर बेचारी प्रधान महोदया पंचायत के ही कुछ खास लोगों और पंचायत के सचिव के संपूर्ण दिशा निर्देश के अनुसार अपने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को जैसे तैसे निभा रही हैं।
इस पंचायत में व्याप्त अनियमितताएं कई है जिसकी सिलसिलेवार चर्चा हम आगे करेंगे लेकिन यहां हम इस पंचायत की कुछ खास बातें आपको बताना चाहेंगे।
प्रथमदृष्टया इस पंचायत में प्रधान की अगुवाई में आज तक एक भी खुली बैठक का आयोजन नहीं किया गया है। यह पंचायत के लिए बहुत ही बड़ा मुद्दा इसलिए है कि पंचायत में किसी भी विकास कार्य की रुप रेखा से लेकर बुनियाद तक इसी खुली बैठक में आम जनता और मनोनीत पंचायत के सदस्यों के समक्ष रखी जाती है।
खुली बैठक नहीं होने के संबंध में जब मीडिया द्वारा ग्राम प्रधान से संपर्क करने की कोशिश की गई तो यह वाकया भी किसी सुर्खी से कम नहीं रहा।
“पंचायत की सरकार कितनी वफादार” विषय पर कवरेज कर रहे दिल्ली के कुछ मीडियाकर्मियों ने बमुश्किल से ग्रामप्रधान का जो मोबाइल नंबर हासिल किया, वह निकला प्रधान प्रतिनिधि का। बताना आवश्यक है कि नियमतः ग्राम पंचायत स्तर पर किसी प्रधान प्रतिनिधि या प्रधान पति जैसा कोई संवैधानिक पद नहीं है लेकिन आपको इस दोनों ही पद पर स्वघोषित व्यक्ति उत्तर प्रदेश के अमूमन पंचायतों में मिल जाएंगे। यह विषय भी अलग से चर्चा की है।
दुलहापुर बनकट के कथित प्रधान प्रतिनिधि के नंबर पर जब उक्त मीडिया टीम के एक वरीष्ठ पत्रकार ने दिल्ली से फोन किया तो उन्होंने अपने पुत्र को फोन पकड़ा दिया।मजे की बात तो यह कि उसने भी अपने आपको प्रधान प्रतिनिधि ही बताया। इस हिसाब से उक्त पंचायत में एक प्रधान के दो दो प्रतिनिधि होने की पुष्टि हुई। उक्त प्रतिनिधि से पंचायत के विषय में बुनियादी बातें पूछी गई तो उसका जवाब उनके द्वारा अनुमानित बताया गया।जिस पर उनसे ग्रामप्रधान से बात कराने का आग्रह किया गया तो समयानुसार बात कराने का आश्वासन भर दिया गया और दिन भर माथापच्ची करने के बावजूद प्रधान से उक्त पत्रकार की बात नहीं हो पाई।

तत्पश्चात पंचायत सचिव से संपर्क किया गया तो उनका फोन रिसीव करने वाले ने स्पष्ट रुप से कहा कि, मैं सचिव नहीं हूं और मुझे किसी दुलहापुर बनकट पंचायत की जानकारी नहीं है। विभिन्न सूत्रों से आश्वस्त किया गया तो साबित हो गया कि उक्त नंबर पंचायत सचिव का ही है और उनका फोन अक्सर उनके पास नहीं होता। काफी मशक्कत करनी पड़ी तब जाकर आखिर उसी नंबर पर पंचायत सचिव महोदय से बात हो पाई। हम आपको बातचीत का यथावत विवरण आपको बता रहे हैं :
हेलो…..(पत्रकार)
हां….(सचिव)

मै दिल्ली से एक पत्रकार बोल रहा हूं आपसे पंचायत दुलहापुर बनकट के संबंध में कुछ आवश्यक बातें करना चाहता हूं।(पत्रकार)
आप हो कौन (सचिव पंचायत) ? बताना चाहता हूं कि सचिव महोदय को बार बार बताए जाने पर भी समझ में आया नहीं कि पत्रकार क्या होता है। अनमने भाव से और गैर मर्यादित ढंग से उनका पत्रकार से फोन पर बात करना भी एक सवाल उठाता है।

यह पूछे जाने पर कि आपके उक्त पंचायत में खुली बैठक नहीं हुई है तो सचिव महोदय का तेवर बदल गया और उन्होंने कहा कि, आम आदमी जो कहेगा आप मान लोगे तो फिर उन सबसे ही पूछो मेरा टाइम क्यों खराब कर रहे हो?’ अंततः सचिव महोदय कहते रहे कि नियमित रूप से खुली बैठक हुई है और सभी कार्य सुचारू रूप से और सरकारी योजनाओं के अनुकूल किए जा रहे हैं। सचिव महोदय से जब पूछा गया कि आपके उक्त पंचायत भवन में सीसीटीवी कैमरे और कंप्यूटर भी नहीं है तो उनका जवाब था कि ‘सब है, कौन कहता है कि नहीं है?’ यहां पर यह बताना जरूरी है कि पत्रकार से फोन पर वार्ता के फौरन बाद आनन फानन में पंचायत भवन में सीसीटीवी कैमरे की सेटिंग करा दी गई जिसके बहुत सारे ग्रामीण प्रत्यक्ष गवाह भी हैं। पंचायत भवन अपनी जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है जो जगजाहिर है और उसमें कुछ घंटे में सीसीटीवी कैमरे का इंस्टालेशन भी सवाल के घेरे में आ गया है।

पंचायत के आधे से अधिक लोगों ने साफ कहा कि यहां पर एक बार भी खुली सांठगांठ से उक्त पंचायत में सरकारी योजनाओं का कितना कुछ क्रियान्वयन हुआ है यह भी गहन जांच का विषय है। कुल मिलाकर जहां एक ओर सरकार पंचायत को राष्ट्र की नींव जताने की लाखों जतन कर रही है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के नाम पर कुछ पदासीन लोग उसे निजि फायदे का सशक्त माध्यम समझ बैठे हुए हैं। उच्चाधिकारियों से ही अगर छोटी छोटी बातों पर सीधी निगरानी की अपेक्षा की भी जाए तो फिर पंचायत स्तर पर किसी अधिकारी की उपयोगिता पर भी सवाल उठाया जा सकता है।

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