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दिवाली के इस योग का आपकी राशि पर असर: पं वैभव शास्त्री जी

उत्तर प्रदेश के जलेसर में हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक दीपावली पर्व इस बार 13 नवंबर से शुरु होने जा रहा है। वहीं इस पर्व का मुख्य त्योहार यानि दिवाली इस बार 14 नबंवर 2020 (शनिवार) को मनाई जाएगी। शास्त्री जी ने बताया कि दीपावली का ये 5 दिवसीय यह पर्व धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलता है। वहीं इस बार इस दिवाली पर ग्रहों का बड़ा खेल देखने को मिलेगा, जिसके चलते कई वर्षों बाद दुर्लभ संयोग बन रहा है । पं वैभव शास्त्री ने आगे बताते हुए कहा अंधकार पर प्रकाश की विजय के इस पर्व पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश की पूजा करने का विधान है। हर साल कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाए जाने वाले इस त्‍योहार के पीछे मान्‍यता यह है कि इस दिन ही भगवान श्रीराम रावण को मारकर और अपना वनवास पूरा कर अयोध्‍या लौटे थे और उसी खुशी में पूरी अयोध्‍या दीपों से जगमग हुई थी। उसके बाद से ही दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई थी। दिवाली दीपदान और धनतेरस से शुरू होती है और गोवर्धन पूजा के बाद भैया दूज के दिन तक ये पर्व चलता है। इस दिवाली ग्रहों का बड़ा खेल देखने को मिलेगा। कई वर्षों बाद यह दुर्लभ संयोग बन रहा है, तंत्र पूजा के लिए दीपावली पर्व को विशेष माना जाता है। इस वर्ष 14 नवंबर, दिन शनिवार को दिवाली है। ज्योतिष विशेषज्ञों की मानें तो सन 1521 के करीब 500 साल बाद ग्रहों का दुर्लभ योग देखने को मिलेगा।

ये बन रहा है दुर्लभ संयोग…
दरअसल, 14 नवंबर को देश भर में दीपावली में गुरु ग्रह अपनी राशि धनु में और शनि अपनी राशि मकर में रहेंगे। वहीं, शुक्र ग्रह कन्या राशि में नीच रहेगा, इन तीनों ग्रहों का यह दुर्लभ योग वर्ष 2020 से पहले सन 1521 में 9 नवंबर को देखने को मिला था। उस बार भी इसी दिन दीपोत्सव पर्व मनाया गया था।

ये होगा लाभ
पं वैभव शास्त्री के अनुसार गुरु और शनि आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाले ग्रह माने गया है। ऐसे में यह दीपावली आपके लिए कई शुभ संकेत लेकर आती हुई दिख रही है।

दीपावली का शुभ मुहूर्त
14 नवंबर को चतुर्दशी तिथि पड़ रही है जो दोपहर 1:16 तक रहेगी। इसके बाद अमावस तिथि का आरंभ हो जाएगा, जो 15 नवंबर की सुबह 10:00 बजे तक रहेगी। हालांकि, 15 तारीख को केवल स्नान दान की अमावस्या की जाएगी। ज्ञात हो कि लक्ष्मी पूजा संध्याकाल या रात्रि में दिवाली में की जाती है।

दीपावली 2020 पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त… 2020
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :17:30:04 से 19:25:54 तक
अवधि :1 घंटे 55 मिनट
प्रदोष काल :17:27:41 से 20:06:58 तक
वृषभ काल :17:30:04 से 19:25:54 तक

दीपावली 2020 महानिशीथ काल मुहूर्त…
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :23:39:20 से 24:32:26 तक
अवधि :0 घंटे 53 मिनट
महानिशीथ काल :23:39:20 से 24:32:26 तक
सिंह काल :24:01:35 से 26:19:15 तक

दीपावली 2020 शुभ चौघड़िया मुहूर्त…
अपराह्न मुहूर्त्त (लाभ, अमृत):14:20:25 से 16:07:08 तक
सायंकाल मुहूर्त्त (लाभ):17:27:41 से 19:07:14 तक
रात्रि मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल):20:46:47 से 25:45:26 तक
उषाकाल मुहूर्त्त (लाभ):29:04:32 से 30:44:04 तक

दिवाली में मां लक्ष्मी के साथ-साथ श्री यंत्र की पूजा की जाती है। ज्योतिष विशेषज्ञों की मानें तो इस दीपावली गुरु धनु राशि में रहेगी ऐसे में श्री यंत्र की पूजा रात भर कच्चे दूध से करना लाभदायक हो सकता है । इसके अलावा इस बार इस दिन शनि अपनी मकर राशि में विराजमान रहेंगे। इस दिन अमावस्या का योग भी है, ऐसे में तंत्र-यंत्र की पूजा करना इस दिन लाभदायक होगा।

दिवाली पर इनकी भी करें पूजा
दिवाली पर केवल महालक्ष्मी की ही नहीं बल्कि साथ ही साथ भगवान विष्णु की पूजा अर्चना भी श्रद्धा पूर्वकर की जानी चाहिए, तब ही मां प्रसन्न होती है। मान्यता के अनुसार इसके अलावा इस दिन यमराज, चित्रगुप्त, कुबेर, भैरव, हनुमानजी, कुल देवता व पितरों का भी श्रद्धा पूर्वक पूजना चाहिए।

दिवाली पर जरूर करें ये पाठ
दिवाली में श्री सूक्त का पाठ जरूर करना चाहिए। साथ ही साथ विष्णु सहस्रनाम, गोपाल सहस्रनाम आदि का पाठ भी आपके ग्रह-नक्षत्रों के लिए बेहद शुभ साबित हो सकता है।

दोनों दिवाली एक ही दिन
इस बार दोनों दिवाली एक ही दिन मनायी जाएगी। सामान्यत: कार्तिक मास की त्रयोदशी से भाईदूज तक दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। लेकिन, इस बार छोटी (नरक चौदस) और बड़ी दिवाली एक ही दिन पड़ रही हैं। आपको बता दें कि कार्तिक मास की त्रयोदशी इस वर्ष 13 नवंबर को और छोटी व बड़ी दिवाली 14 नवंबर को है।

दीपावली पूजन विधि
: पूजा वाली चौकी लें, उस पर साफ कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा को विराजमान करें।
: मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की तरफ होना चाहिए.
: अब हाथ में थोड़ा गंगाजल लेकर उनकी प्रतिमा पर इस मंत्र का जाप करते हुए छिड़कें।
: ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।। जल अपने आसन और अपने आप पर भी छिड़कें। – इसके बाद मां पृथ्वी माता को प्रणाम करें और आसन पर बैठकर हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प लें।
: इसके बाद एक जल से भरा कलश लें जिसे लक्ष्मी जी के पास चावलों के ऊपर रखें. कलश पर मौली बांधकर ऊपर आम का पल्लव रखें. साथ ही उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें।
: अब इस कलश पर एक नारियल रखें। नारियल लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
: अब नियमानुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। फिर लक्ष्मी जी की अराधना करें। इसी के साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर की भी विधि विधान पूजा करें।

: पूजा करते समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक और एक बड़ा दीपक जलाना चाहिए, एक दीपक चौकी के दाईं ओर एक बाईं ओर रखना चाहिए।
: भगवान के बाईं तरफ घी का दीपक जलाएं, और उन्हें फूल, अक्षत, जल और मिठाई अर्पित करें।
: अंत में गणेश जी और माता लक्ष्मी की आरती उतार कर भोग लगाकर पूजा संपन्न करें
: जलाए गए 11 या 21 दीपकों को घर के सभी दरवाजों के कोनों में रख दें।

इस दिन पूजा घर में पूरी रात एक घी का दीपक भी जलाया जाता है।

इन बातों का रखें ध्यान…
लक्ष्मी पूजा में पंचामृत, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, गन्ना, गंगाजल, कमल गट्टा, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का इस्तेमाल करें। मां लक्ष्मी के प्रिय फूल कमल व गुलाब हैं तो इनका इस्‍तेमाल जरूर करें। फल के रूप में सीताफल, श्रीफल, बेर, अनार व सिंघाड़े का भोग लगाना चाहिए। नैवेद्य में घर में शुद्ध घी से बनी केसर की मिठाई या हलवा जरूर रखें, व्यावसायिक प्रतिष्ठान की भी पूजा जरूर करें.।

रात के 12 बजे लक्ष्मी पूजन करने का खास महत्‍व होता है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल के तेल का इस्तेमाल करें। पूजा के बाद रात 12 बजे चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल तथा छाज (सूप) को तिलक करना चाहिए। जलाए गए दीयों का काजल स्‍त्री और पुरुष अपनी आंखों में लगाएं। भोर में 4 बजे ‘लक्ष्मीजी आओ, दरिद्र जाओ’ कहने की मान्यता है।

अलीगढ़ से नगर संवाददाता
शेखर सिंह जादौन

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