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बुधवार से होगा पितृपक्ष आरंभ स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य का सुख देते हैं पितृ : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में वैसे तो हर माह की अमावस्या पर पितरों का तर्पण किया जाता है लेकिन पितृ पक्ष का समय पूरी तरह से पितरों को समर्पित है, श्राद्ध में पितरों का तर्पण करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है। श्राद्ध का तात्पर्य पितरों के प्रति प्रकट की जाने वाली श्रद्धा से है, पितरों की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रों में श्राद्ध बहुत महत्व माना गया है। कहा जाता है कि पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर सुखी जीवन का आशीर्वाद प्रदान करते हैं| उक्त उद्गार के साथ महामंडलेश्वर स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने 02 सितम्बर से प्रारंभ होने वाले श्राद्ध पक्ष के बारे में जानकारी दी। स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि पितृ पक्ष का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाना चाहिए वहीँ पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी के दिन ही किया जाता है लेकिन अगर के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाना चाहिए और जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए। स्वामी जी ने बताया कि श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराया जाता है,इसमें चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है, जल में काले तिल, जौ, कुशा यानि हरी घास और सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करना चाहिए| पितृपक्ष में पूर्वजों को याद करके पूजा-पाठ के अलावा दान-धर्म किया जाता है एवं ग्रहों की शांति के लिए दान-पुण्य और पूजा पाठ किए जाते हैं, ताकि हम पर पूर्वजों की कृपा बनी रहे श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है| श्राद्ध में किए गए तर्पण से प्रसन्न होकर पूर्वज स्वास्थ्य, बल,श्रेय, धन-धान्य और सभी सुखों का आशीर्वाद देते हैं, श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता है। अनंत चतुर्दशी । महामंडलेश्वर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने अनंत चतुर्दशी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है, इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन गणपति विसर्जन भी किया जाता है और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना अनंत के रूप में करी जाती है| इस बार 1 सितंबर यानी मंगलवार को अनंत चतुर्दशी का व्रत पड़ रहा है। अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त के बारे में स्पष्ट जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि अनंत पूजा सुबह 5:59 बजे से 9:40 बजे तक वहीँ गणेश विसर्जन सुबह 9:10 बजे से दोपहर 1:56 बजे तक करना लाभकारी होगा। अनंत चतुर्दशी पूजा विधान के बारे में स्वामी जी ने बताया कि इस व्रत के महत्व का वर्णन अग्नि पुराण में मिलता है। व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान के बाद पूजा स्थल पर कलश स्‍थापना करें कलश पर भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगाएं,कुमकुम, केसर हल्दी से रंगकर एक धागे को अनंत सूत्र बनाएं, जिसमें चौदह गांठें होनी चाहिए। अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखकर अनंत सूत्र की पूजा करें ‘अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव। अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।’ मंत्र का जाप कर अनंत सूत्र बाजू में बांध लें।

अलीगढ़ से संवाददाता
अक्षय कुमार गुप्ता

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